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दिसंबर, 2008 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

धमाके में मेरी मौत हुई तो....

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डरने लगा हूं लगातार हो रहे धमाके से। सोचता हूं अगर मेरी भी मौत किसी धमाके में हो गई तो क्या होगा? कई बार तो ये भी सोचता हूं कि धमाके में मेरी मौत हो गई और साथ में कोई आईडेंटिटी कार्ड नहीं रहा तो कोई मेरी लाश को कैसे पहचानेगा? कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि मेरी भी लाश लावारिस कहलाएगी। खुदा से बस यही गुजारिश है कि अगर ऐसे धमाकों में मौत हो तो मेरी पहचान जरूर हो जाए। कितना जरूरी हो गया है आज की तारीख में खुद की पहचान बनाए रखना। लगातार ये भी सोचता हूं कि अगर मेरी मौत हो गई तो क्या होगा? सबसे ज्यादा तकलीफ किसको होगी? जाहिर है पत्नी और बच्चे टूट जाएंगे। मेरे बिना मेरी पत्नी और बच्चे एक मिनट की भी कल्पना नहीं कर सकते। जानता हूं कि पत्नी खूब रोएगी। तमाम शिकायतें होगीं। रोते-रोते बातें करेगी। मुझसे बार-बार कहेगी...कहां चले गए तुम? आस पड़ोस के लोग और रिश्तेदार बार-बार मेरी पत्नी को ढाढस दिलाने की कोशिश करेंगे पर ऐसे समय में कौन रुकता है। जिंदगी की सबसे खराब घड़ी यही तो होती है। मेरी बेटी को मौत और जिंदगी की समझ होने लगी है। उसको पता है मौत का मतलब। वो जानती है कि जिसकी मौत हो जाती है वो वापस नहीं आते

आमिर खान का 'बाज़ारवाद'

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प्रिय मित्रों, अगर आप आमिर खान के फैन्स क्लब के सदस्य हैं तो मुझे माफ कीजिएगा। अगर आप आमिर के मिस्टर परफेक्शनिस्ट वाले व्यक्तित्व को आदर्श मानते हैं तो फिर से माफी मांगता हूं। और अगर आप ये मानते हैं कि आमिर लीक से हटकर चलने वाले अभिनेता हैं तो आपके साथ कुछ बातें शेयर करना चाहता हूं। आमिर खान को अचानक बुद्धि आ गई है। बुद्धि आने का मतलब है आमिर दुनियादारी सीख चुके हैं। शाहरुख खान से किसी मायने में अब कम नहीं रहे। न तो पैसे कमाने में और न ही स्टोरी सलेक्शन में। कहते हैं जैसे ही आदमी में पैसे कमाने की धुन सवार होती है वो हर चीज को प्रोडक्ट के तौर पर देखने लगता है। अमुक चीज से संवेदनात्मक लगाव खत्म हो जाता है। अब तक आमिर ने स्टोरी के चयन में भले ही एक मिसाल कायम किया हो। पर गजनी के लिए ऐसा कहना सरासर गलत होगा। मैं स्पष्ट कर दूं--मैंने फिल्म गजनी नहीं देखी। पर जिस तरह से आमिर ने इसके लिए प्रचार की सारी हदें पार की उससे साफ लगता है कि आमिर अब बिक चुके हैं। अपना प्रोडक्शन हाउस क्या खोला, दुनियादारी तुरंत समझ में आने लगी। सड़कों पर गजनी कट बाल काटने से लेकर पता नहीं क्या-क्या प्रमोशनल कैंपेन चल

26/11 एक महीने बाद

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रोशनी को इस बात का ठीक-ठीक एहसास नहीं है कि उसके पापा कहां चले गए हैं। मम्मी को टूटकर घंटों रोते देखती है, दादी को रोते देखती है तो उसे एक मिनट के लिए लगता है कि पता नहीं ये लोग इतना क्यों रो रहे हैं? दादा जी तो कहते हैं कि पापा काम पर गए हैं। काम खत्म होते ही घर आ जाएंगे। लेकिन सबके बुलाने के बाद भी जब पापा नहीं आते तो रोशनी उनसे शिकायत करती है। कहती है पापा बहुत बुरे हैं। आएंगे तो उनसे मैं बात नहीं करूंगी। और जब प्यार करेंगे, मनपंसद चीज लाकर देंगे तब उनके पास जाऊंगी। रोशनी बच्ची है। महज पांच-छह साल की मासूम। घर वालों ने उसे ये कहकर बहला दिया है कि उसके पापा काम पर गए हैं और जब आएंगे तो उसके लिए बुक और पेंसिल लाएंगे। बस वो उस दिन की ताक में है कि कब उसे नई किताब और पेंसिल मिलेगी। रोशनी के पापा मुंबई हमले में आतंकी इस्माइल की गोलियां के शिकार हो गए। रोशनी के पापा ठाकुर वाघेला मुंबई के जीटी अस्पताल में काम करते थे। रात के तकरीबन ग्यारह बजे का समय रहा होगा। कुछ देर पहले ही ठाकुर अपने घर लौटा था। लेकिन इसी समय आतंकियों ने कहर बरपाना शुरु कर दिया। गोलियां उगलती बंदूकों ने लोगों को छलनी करन

' डिप्रेशन में आडवाणी '

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पांच राज्यों के विधानसभा के नतीजे से बीजेपी को सबक लेने की जरूरत है। बीजेपी के थींक टैंक अरुण जेठली जैसे नेताओं को तो खासतौर से। उन्हें समझ लेना चाहिए कि राष्ट्रीय मुद्दे अब मायने नहीं रखते। जनता को विकास की चीजें नजर आएंगी तो फिर कोई कुछ भी कर ले...ऊंट उसी करवट बैठेगा। इन नतीजों ने गुजरात के तेजतर्रार मुख्यमंत्री नरेंद्र भाई मोदी को भी एक झटका दिया है। नरेंद्र भाई मोदी ये कतई न समझें की बीजेपी में सिर्फ वही एक ऐसे नेता नहीं बच गए हैं जो अपने बलबूते पर चुनाव जीत सकते हैं। शिवराज सिंह चौहान और चावल वाले बाबा यानी रमन सिंह उनके सामने सामने हैं। मजेदार बात ये है कि इन दोनों मोदी के फार्मूले का इस्तेमाल भी नहीं किया। बीजेपी में खुद को एकमात्र कद्दावर नेता मानने वाले लालकृष्ण आडवाणी ने भोपाल में बड़ा सोच समझकर हिंदूत्व का कार्ड खेलने की कोशिश की। साध्वी प्रज्ञा का जमकर हिमायत किया। लेकिन उसके बाद भी शिवराज सिंह ने विकास के मुद्दे को ही अपना एजेंडा बनाए रखा। बात बन गई। उधर चावल वाले बाबा की छवि हमेशा से बड़ी साफ सुथरी रही है। हैम्योपैथिक डॉक्टर रमन सिंह ने सिर्फ विकास को ही एकमात्र आधार बनाय