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मार्च 13, 2008 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बदल गई परिभाषा

"पत्रकार और साहित्कार में कोई अंतर है क्या? मैं मानता हूं कि नहीं है। इसलिए नहीं कि साहित्कार रोजी के लिए मीडिया में नौकरी करते हैं, बल्कि इसलिए पत्रकार और साहित्यकार दोनों नए मानव संबंध की तलाश करते हैं। दोनों ही दिखाना चाहते हैं कि दो मनुष्यों के बीच नया संबंध क्या बना। दोनों के उद्देश्य में पूर्ण समानता है। कृतित्व में समानता कमोबेश है। पत्रकार जिन तथ्यों को एकत्र करता है उनको क्रमबद्ध करते हुए उन्हें परस्पर संबंध से विच्छिन्न नहीं करता जिससे वे जुड़े हुए और क्रमबद्ध हैं। उसके ऊपर तो यह लाजिमी होता है कि वह आपको तर्क से विश्वस्त करे कि यह हुआ तो यह इसका कारण है, ये तथ्य हैं और ये समय, देश, काल परिस्थिति आदि हैं जिनके कारण ये तथ्य पूरे होते हैं। "( लिखने का कारण- रघुवीर सहाय-पृष्ठ-177) सहाय जी ये पंक्तियां उद्धत करने का मेरा मक़सद ये नहीं है कि मैं किसी को ये बताऊं कि कोई पत्रकार और साहित्यकार क्यों बना और क्यों बनना चाहता है। मैं सिर्फ ये इशारा करना चाहता हूं कि सामाजिक संरचना के टूटने और उसके बिखरने के पीछे जो प्रेरक तत्व काम कर रहे हैं उसे सही तरीक़े से दर्शाया जा रहा है