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मार्च 20, 2008 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जुझारुओं के लिए पैगाम

कोई दु:ख मनुष्य के साहस से बड़ा नहीं वही हारा जो लड़ा नहीं -- कुँवरनारायण परिस्थितियां पशोपेश में डाल सकती हैं। किंतु परिस्थितियों को हावी होने से बचाना होगा। समय बलवान है। सबकुछ सिखाता-दिखाता है। व्यक्ति दु:ख-सुख से परे रह नहीं सकता। किंतु इनकी सही परिभाषा क्या है? मनुष्य यदि जूझने पर आमादा हो जाए तो क्या नहीं कर सकता? लोग डराते हैं। समाज ताने देता है। परिस्थितियां प्रतिकूल हो जाती हैं। पर लड़ने से पहले हार जाने वाला सबसे बड़ा कायर है। जूझने में जो मज़ा है वह किसी 'पाने' में नहीं। समझ वही सकता है जिसने पूरे साहस से लड़ाई की हो। सरेंडर कर देना मौत की स्थिति है। किंतु जब तक मौत और जिंदगी का फ़ासला हो, लड़ाई जारी रखनी होगी। दु:ख डिगा सकता है। हिला देता है। बेचैन कर देता है। पर मार नहीं सकता। मरता वही है जो दु:ख को अपने पर हावी होने देता है। समय और समाज उन्हीं के आगे नतमस्तक होंगे जो अंतिम साँस तक अपनी लड़ाई जारी रखते हैं। जीतना जिसका उद्देश्य नहीं, संघर्ष ही जीवन हो। जूझ में ही उद्देश्य निहित है। जीत का आनंद है। खोने और पाने के बीच की जद्दोजहद ही मायने रखती ह