संदेश

दिसंबर 26, 2008 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

26/11 एक महीने बाद

चित्र
रोशनी को इस बात का ठीक-ठीक एहसास नहीं है कि उसके पापा कहां चले गए हैं। मम्मी को टूटकर घंटों रोते देखती है, दादी को रोते देखती है तो उसे एक मिनट के लिए लगता है कि पता नहीं ये लोग इतना क्यों रो रहे हैं? दादा जी तो कहते हैं कि पापा काम पर गए हैं। काम खत्म होते ही घर आ जाएंगे। लेकिन सबके बुलाने के बाद भी जब पापा नहीं आते तो रोशनी उनसे शिकायत करती है। कहती है पापा बहुत बुरे हैं। आएंगे तो उनसे मैं बात नहीं करूंगी। और जब प्यार करेंगे, मनपंसद चीज लाकर देंगे तब उनके पास जाऊंगी। रोशनी बच्ची है। महज पांच-छह साल की मासूम। घर वालों ने उसे ये कहकर बहला दिया है कि उसके पापा काम पर गए हैं और जब आएंगे तो उसके लिए बुक और पेंसिल लाएंगे। बस वो उस दिन की ताक में है कि कब उसे नई किताब और पेंसिल मिलेगी। रोशनी के पापा मुंबई हमले में आतंकी इस्माइल की गोलियां के शिकार हो गए। रोशनी के पापा ठाकुर वाघेला मुंबई के जीटी अस्पताल में काम करते थे। रात के तकरीबन ग्यारह बजे का समय रहा होगा। कुछ देर पहले ही ठाकुर अपने घर लौटा था। लेकिन इसी समय आतंकियों ने कहर बरपाना शुरु कर दिया। गोलियां उगलती बंदूकों ने लोगों को छलनी करन