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अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे

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कहते हैं हर किसी का अंत आता है। चाहे वो रावण हो या फिर प्रभाकरण। अंत तो तय है। इन दिनों लालू को देखकर आपको क्या महसूस होता है? क्या लालू का 20 साल का राजयोग अब खत्म होने पर है? या हो चुका है? मुझे तो लगता है लालू का राजनीतिक करियर अगले पांच साल तक कुछ खास नहीं दिखता। न तो बिहार में न ही केंद्र में। हाथ की रेखाओं और तांत्रिकों पर भरोसा करने वाले लालू इन दिनों एक नए और अवतारी बाबा की तलाश में हैं। उन्हें कोई ऐसे बाबा की तलाश है जो ये कह सके कि आने वाला समय अच्छा रहेगा। जाहिर है जो सच बोलने वाला बाबा होगा वो ऐसा नहीं कहेगा। लालू ने ये माना है कि जनता ने उन्हें जनाधार नहीं दिया है। लालू ने ये भी माना है कि कांग्रेस के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन न करना सबसे बड़ी भूल रही। दरअसल लालू को ये लगने लगा था कि उनके सामने कोई नहीं। उनमें बाली की शक्ति आ गई है। लेकिन जब बाली का अंत हो सकता है तो फिर लालू तो तिकड़म और जाति के आधार पर बने एक नेता हैं। जो लोहिया के चेले होने का राग अलापने वाले रंगे सियार हैं। लालू ने बिहार के अपने 15 साल के शासन में वो सबकुछ किया जिसकी कल्पना हम और आप नहीं कर सकते। कानून-व्

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इस बच्चे की गोद में जो नवजात शिशु है वो न तो इसका अपना भाई है न ही इसके अंकल का बेटा। नवजात किसी पड़ोसी का भी बच्चा नहीं है। जिसकी गोद में बच्चा है उसका दावा है कि ये नवजात किसी और का नहीं बल्कि उसी की बेटी है। जी हां, इस 13 साल के बच्चे का दावा है कि इस नवजात का पिता कोई और नहीं बल्कि ये खुद है। इसका नाम है एल्फी पैटन। ब्रिटेन के एल्फी ने दावा किया कि उसकी गर्ल फ्रेंड चैंटले की बेटी मैसी का असली पिता कोई और नहीं वही है। इस दावे पर उसके 14 साल के दोस्त टेलर बार्कर ने आपत्ति जताई थी। इसके बाद एल्फी और मैसी का डीएनए टेस्ट कराया गया। डीएनए टेस्ट रिपोर्ट में ये खुलासा हुआ कि टेलर बार्कर एल्फी की गर्लफ्रैंड चैंटले की बेटी मैसी का असली पिता है। इसके बाद मामला एकदम बदल गया। अब तक मैसी की देखभाल की बातें करने वाला एल्फी हताश हो गया। टेलर बार्कर ऐसा माना जा रहा है कि एल्फी का क्लासमेट टेलर अब अपनी बेटी मैसी के पालन-पोषण करेगा। टेलर ने भी मैसी के जन्म के बाद दावा किया था कि 9 महीने पहले उसका चैंटले के साथ शारीरिक संबंध हुआ था। जाहिर है टेलर खुद हैरान है कि वो अब एक बच्ची का पिता बन गया है। लेकिन

जाग गई जनता

15 वीं लोकसभा के परिणाम में जीत भले ही यूपीए को मिली हो। लेकिन इस जीत को गौर से देखे तो कई महत्वपूर्ण बदलाव के संकेत मिलते हैं। जनता अब लाचार और बेचारी नहीं रही। जनता ने ये समझना शुरु कर दिया है कि क्या अच्छा है और क्या खराब। बहकावे की राजनीति करने वालों को जनता ने सबक सिखाया है। भावनात्मक स्तर पर वोट हासिल करने वालों की हवा निकली है। जाति के आधार पर घटिया राजनीति करने वालों के मुंह पर तमाचा लगा है। मौकापरस्ती और फिरकापरस्ती करने वालों को भी जनता ने उसकी औकात दिखा दी है। लोगों के लिए सबसे अहम मुद्दा अब विकास बन गया है। इस चुनाव ने कम से कम ये साबित करने में पूरी सफलता पाई है। विकास हो और होता हुए दिखे दोनों ही चीजें जनता के लिए अब मायने रखने लगे हैं। बिना विकास के वोट की कामना करने वाले धुरंधर नेता अब भूल जाएं कि जनता उनके महिमा मंडन से प्रसन्न हो जाएगी। अब सिर्फ सेलीब्रेटी का टैग काम नहीं करने वाला है। आप को आम जनता की चिंता करनी पड़ेगी। चाहे कोई कितना बड़ा नाम क्यों न हो। विनोद खन्ना और राज बब्बर की हार से इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। पासवान और लालू की हार ने ये साबित कर दिया कि जनत